पटना कोर्ट ने सरकारी अधिकारियों द्वारा विभिन्न अदालती आदेशों का पालन नहीं करने पर कड़ी आलोचना करते हुए कहा है कि “हमारे सामने कई ऐसे मामले आए हैं, जहां अवमानना याचिका दायर किए बिना अदालती आदेशों का क्रियान्वयन नहीं किया जा रहा है।” हाई कोर्ट में अवमानना याचिकाओं की भरमार हो गई है। न्यायाधीश पी.बी. बजनश्री एवं न्यायाधीश आलोक कुमार पांडेय की खंडपीठ ने शिवहर जिले के बसंतपट्टी गांव निवासी संजय कुमार द्वारा दायर अवमानना याचिका की सुनवाई के दौरान सरकारी अधिकारियों के उदासीन रवैये पर कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि कुछ अधिकारियों के उदासीन रवैये की वजह से अवमानना की गंभीर संवैधानिक शक्ति को निष्पादन कार्यवाही तक सीमित कर दिया है।
डाई कोर्ट द्वारा दिए गए उपचारात्मक नादेशों के हर दूसरे मामले में आदेश हाईहाई कोर्ट की तीखी टिप्पणी पटना हाई कोर्ट ने अवमानना याचिका की सुनवाई के दौरान सरकारी अधिकारियों के उदासीन रवैये पर लगाई कड़ी फटकार प्रत्येक वादी, विभिन्न परिस्थितियों में एक ही कारण से बार-बार न्यायालय का दरवाजा खटखटाने को मजबूर है। लगभग हर याचिका के बाद अवमानना याचिका दायर की गई। यह प्रथा निंदनीय है। हाईकोर्ट लागू करवाने के लिए अवमानना का मामला दायर करना पड़ता है।
कोर्ट ने उक्त टिप्पणी आरा मिल से संबंधित याचिका के संदर्भ में की, जिसमें समय सीमा के करीब दो साल बीत जाने के बाद भी अदालत के आदेश का अनुपालन नहीं किया गया था। अवमानना को गंभीरता से लेते हुए न्यायालय ने पहले प्रधान मुख्य वन संरक्षक एन. जवाहर बाबू को तलब किया था, ताकि यह स्पष्ट किया जा सके कि अदालती अवमानना की कार्यवाही क्यों न की जाए या दंड क्यों नहीं दिया जाए। अधिकारी का स्पष्टीकरण सुनने के बाद न्यायालय ने टिप्पणी की कि सम्मन किए जाने के बाद ही अधिकारियों ने इस मुद्दे पर अपनी आंखें खोलीं। पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और वन विभाग ने न्यायालय को याचिकाकर्ता की शिकायत को संबोधित करने में कुछ प्रशासनिक कठिनाइयों के बारे में सूचित किया, जिसके कारण और देरी हुई। न्यायालय ने निर्देश दिया था कि याचिकाकर्ता को तीन हजार रुपये का जुमांना अदा किया जाए।