पितृ पक्ष आज से प्रारंभ हो गए हैं और इसका समापन 02 अक्टूबर 2024 को सर्व पितृ अमावस्या के साथ होगा। पितृ पक्ष को श्राद्ध भी कहते हैं। पितृ पक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म करने का विधान है। यह अवधि हमारे पूर्वजों के प्रति श्रद्धा उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए खास माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि पूर्वजों के आशीर्वाद के बिना कोई भी कार्य सफल नहीं हो पाता है. वहीं, ज्योतिष की मानें तो अगर पितृपक्ष के दौरान आपको ये संकेत दिखाई दें तो समझें आपके पूर्वज आपसे बेहद प्रसन्न हैं. तो चलिए जानते हैं इन संकेतों के बारे में।
घर में पेड़-पौधों का हरा-भरा होना: पितृपक्ष के दौरान, अगर आपके घर में लगे पेड़-पौधे जो पहले मुरझा चुके थे, अचानक हरे-भरे सुंदर नजर आने लगें, तो यह एक सकारात्मक संकेत माना जाता है। इसका मतलब यह हो सकता है कि आपके पितर आपसे बहुत खुश हैं उनकी विशेष कृपा आप पर बनी हुई है। ऐसे में आपको पितरों की प्रसन्नता के लिए उनकी पूजा-अर्चना विशेष उपाय करने चाहिए। सपनों में पूर्वजों का दिखना: अगर पितृपक्ष के दौरान आपको सपने में अपने पूर्वज प्रसन्न नजर आते हैं, तो यह भी एक अच्छा संकेत होता है। ऐसा सपना आपके लिए तरक्की का प्रतीक हो सकता है। इस स्थिति में आपको अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए विशेष पूजा हवन करना चाहिए।
आशीर्वाद प्राप्त करने के संकेत: पितृपक्ष में पितरों के निमित्त जरूरतमंदों जानवरों को भोजन करवाना बहुत शुभ माना जाता है। यदि इस दौरान आपके घर की छत या खिड़की पर कौआ आकर भोजन ग्रहण कर लेता है तो इसे पितरों की प्रसन्नता का संकेत माना जाता है। इसी तरह, यदि कोई जानवर जैसे गाय, कुत्ता, बिल्ली, भैंस आदि आकर भोजन ग्रहण कर जाता है, तो यह भी पितरों के आशीर्वाद का संकेत है। चींटियों का आना: अन्य दिनों में यदि घर में चींटियों का आना परेशानी का कारण बनता है, तो पितृपक्ष में काली चींटियों का घर में आना शुभ माना जाता है। इन्हें भगाने के बजाय आटा खिलाना चाहिए। यह भी पितरों की प्रसन्नता का एक संकेत हो सकता है। इन संकेतों को देखकर आप समझ सकते हैं कि आपके पितर आपसे कितने खुश हैं उनकी कृपा आप पर बनी हुई है।पितृ पक्ष के दौरान लोग अपने पितरों को याद कर तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध, दान, ब्राह्मण भोज, पंचबलि आदि करते हैं। ऐसा करने से पितर खुश होते हैं और तृप्त होकर आशीर्वाद देते हैं। हालांकि, श्राद्ध तर्पण मृत्यु की तिथि पर ही करने का विधान है। लेकिन, अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु की तारीख नहीं पता हो किस दिन श्राद्ध करना चाहिए? इस संबंध में पंडित अभय झा का कहना है की आप इस विधि से करें श्राद्ध किसे किस दिन करना चाहिए श्राद्ध: यदि नाना-नानी का श्राद्ध करना है तो प्रतिपदा को करें। अविवाहित मृत्यु होने वालों का श्राद्ध पंचमी को करें।
माता व अन्य महिलाओं का श्राद्ध नवमी को करें। पिता, पितामह का श्राद्ध एकादशी व द्वादशी को करें। अकाल मृत्यु होने वालों का श्राद्ध चतुर्दशी को करें। ज्ञात-अज्ञात सभी पितरों का श्राद्ध अमावस्या को कर सकते हैं। श्राद्ध करते हुए इन बातों का रखें ध्यान: यदि आप जनेऊ धारण पहनते हैं, तो पिंडदान के समय उसे बाएं की जगह दाएं कंधे पर रखें।चढ़ते सूर्य के समय ही पिंडदान करें. बहुत सुबह या अंधेरे में ये कर्म ठीक नहीं माना जाता है।पितरों की श्राद्ध तिथि के दिन ब्राह्मणों को यथाशक्ति भोजन करवाएं।पिंडदान कांसे, तांबे या चांदी के बर्तन में या फिर प्लेट या पत्तल में करें।इस दौरान, लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध करते हैं। श्राद्ध कर्म में पितरों का तर्पण, पिंडदान और अन्य धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। पितृ पक्ष (Pitru Paksha) में कौवे को भोजन कराना बहुत महत्वपूर्ण और सबसे जरूरी कार्य माना जाता है।
मान्यता है कि पितृपक्ष में किए गए श्राद्ध कर्म का भोजन कौवे को खिलाने से पितरों को मुक्ति एवं शांति मिलती है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। इससे पितृ प्रसन्न होते हैं और साधक को आशीर्वाद प्रदान करते हैं, जिसके फलस्वरूप अगर साधक की कुंडली में पितृदोष है तो उसको पितृदोष से छुटकारा भी मिलता है। पितरों को प्रसन्न करने और पितृदोष से मुक्ति पाने के लिए पितृ पक्ष में कौवे को भोजन खिलाना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। लेकिन आखिर पितृ पक्ष में कौवे को ही भोजन क्यों कराया जाता है।हिंदू धर्म में कौवे को यमदूत का वाहन और यम का प्रतीक माना जाता है। यमराज मृत्यु के देवता हैं। मान्यता है कि पितरों (पूर्वजों) की आत्माएं पितृपक्ष के दौरान पृथ्वी पर आती हैं और कौए के रूप में भोजन ग्रहण करती हैं। जब हम कौए को भोजन खिलाते हैं, तो यह माना जाता है कि हम अपने पितरों को संतुष्ट कर रहे हैं और उनकी आत्माओं की तृप्ति कर रहे हैं।कुछ मान्यताओं के अनुसार, कौवे को पितरों का संदेशवाहक भी माना जाता है। इसलिए पितृपक्ष में कौवे को भोजन खिलाकर पितरों का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।
कौए का संबंध भगवान राम से भी माना जाता है। जिसका जिक्र एक पौराणिक कथा में है। कथा के अनुसार, एक बार एक कौए ने माता सीता के पैर में चोंच मार दी। इससे माता सीता के पैर में घाव हो गया। माता सीता को पीड़ा में देख कर भगवान राम क्रोधित हो गए और उन्होंने तीर चलाकर उस कौवे को घायल कर दिया। इसके बाद कौवे को अपनी गलती का अहसास हुआ तो उसने माता सीता और प्रभु श्रीराम से माफी मांगी। प्रभु श्रीराम ने कौए को तुरंत माफ कर दिया और वरदान दिया कि अब तुम्हारे ही माध्यम से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होगी। तभी से पितृ पक्ष में कौए को भोजन कराने की ये परंपरा सदियों से चली आ रही है।