
भारतीय सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी की चार दिवसीय भूटान यात्रा रणनीतिक दृष्टि से बेहद अहम मानी जा रही है। यह सिर्फ एक औपचारिक सैन्य दौरा नहीं, बल्कि हिमालय क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने की भारत की सक्रिय सैन्य कूटनीति का हिस्सा है।
भूटान, जो भारत का सबसे घनिष्ठ हिमालयी साझेदार है, उसकी भू-राजनीतिक स्थिति भारत और चीन के बीच संतुलन का केंद्र रही है। जनरल द्विवेदी इस दौरान भूटान के राजा जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक, रॉयल भूटान आर्मी के चीफ ऑपरेशंस ऑफिसर ले. जनरल बाटू शेरिंग, भारतीय सैन्य प्रशिक्षण टीम (IMTRAT) और प्रोजेक्ट दंतक के अधिकारियों से मुलाकात करेंगे। यह बातचीत दोनों देशों के सैन्य सहयोग को और मजबूत करने की दिशा में मानी जा रही है।
भूटान वही देश है, जिसके डोकलाम क्षेत्र में 2017 में भारत और चीन की सेनाएं 73 दिन तक आमने-सामने थीं। चीन की सड़क निर्माण की कोशिशों के खिलाफ भारत ने मजबूती से मोर्चा संभाला था। अब जब चीन फिर से हिमालय में ‘कार्टोग्राफिक आक्रामकता’ (मानचित्रों में बदलाव) और आर्थिक प्रलोभनों के ज़रिए भूटान को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है, ऐसे में भारत का यह सैन्य दौरा एक स्पष्ट संदेश देता है— हिमालय में भारत की पारंपरिक रणनीतिक पकड़ कमजोर नहीं पड़ी है।
भूटान की पश्चिमी सीमाएं भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर, जिसे ‘चिकन नेक’ भी कहा जाता है, के बेहद करीब हैं। यही गलियारा पूरे भारत को पूर्वोत्तर राज्यों से जोड़ता है। अगर भूटान के सीमाई क्षेत्रों में चीन को घुसपैठ का अवसर मिला, तो यह भारत की सामरिक सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है।
बांग्लादेश में ड्रैगन की बिसात और भारत की जवाबी चाल
बांग्लादेश में यूनुस सरकार के दौर में चीन ने आर्थिक और सैन्य सहयोग के जरिए घुसपैठ बढ़ाई है। भारत इस क्षेत्र में चीन की किसी भी आक्रामक नीति को संतुलित करने के लिए भूटान जैसे सहयोगियों के साथ कूटनीतिक-सैन्य तालमेल को सुदृढ़ कर रहा है। यह दौरा इस बात का भी संकेत है कि यदि चीन ने बांग्लादेश या अन्य पड़ोसी देशों में भारत के हितों को चुनौती दी, तो जवाब भूटान जैसे मोर्चों से भी मिलेगा।
भूटान में भारत की मौजूदगी का सबसे बड़ा प्रतीक है प्रोजेक्ट दंतक— सीमा सड़क संगठन (BRO) द्वारा संचालित यह परियोजना 1961 से भूटान में बुनियादी ढांचे के निर्माण में लगी है। अब तक 1,650 किलोमीटर सड़कों और 5,000 मीटर पुलों का निर्माण हो चुका है। यह न केवल भूटान के विकास में योगदान है, बल्कि रणनीतिक सहयोग का एक मजबूत आधार भी है।