हुंकार रैली में धमाके वर्ष 2013 में पटना के गांधी मैदान में हुए विस्फोट प्रकरण में पटना हाई कोर्ट ने बुधवार को चार दोषियों की मृत्यदंड की सजा को 30 वर्ष के कारावास में बदल दिया। एनआइए कोर्ट ने सीरियल बम ब्लास्ट के मामले में दोषी करार दिए गए नौ आतंकियों में से चार को फांसी, दो को आजीवन कारावास, दो अन्य को दस-दस वर्ष की कैद और एक को सात वर्ष कैद की सजा सुनाई थी। विस्फोट में छह लोगों की मृत्यु हुई थी और 89 लोग घायल हो गए थे।
चारों दोषियों (हैदर अली, मोजिबुल्लाह, नोमान और इम्तियाज) को पहले पटना की एनआइए कोर्ट ने गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, विस्फोटक पदार्थ अधिनियम-1908 एवं अन्य अधिनियम के तहत दोषी पाते हुए मृत्यु की सजा सुनाई थी। उन चारों के साथ दोषी पाए गए उमर और अजहरुद्दीन को निचली अदालत से आजीवन कारावास की सजा हुई थी। अनुसंधान के क्रम में पाया गया था कि वे सभी प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट आफ इंडिया (सिमी) से जुड़े हुए थे। ट्रायल कोर्ट ने यह भी पाया था कि सभी आरोपित 30-40 वर्ष की आयु के थे और उनके साथ कोई नरमी बरतने की आवश्यकता नहीं थी।
चूंकि, इनमें कुछ बोधगया विस्फोटों के लिए भी जिम्मेदार थे, इसलिए यह स्पष्ट था कि उन्हें कोई पछतावा नहीं था और इसलिए उन्होंने प्रतिशोध के साथ इस तरह के कृत्य को दोहराया। एनआइए ने पहले दिन ही इसे बताया था, आतंकी हमला। पटना पुलिस की तीन दिनों की जांच के बाद गांधी मैदान सीरियल बम ब्लास्ट की तफ्तीश का जिम्मा एनआइए (नेशनल इंवेस्टिगेटिंग एजेंसी) के हाथों में सौंप दिया गया था। तत्कालीन एनआइए एसपी विकास वैभव जांच दल की मुख्य भूमिका में थे। एनआइए ने पहले दिन ही पता कर लिया कि इस बम ब्लास्ट के पीछे इंडियन मुजाहिद्दीन (आइएम) का हाथ है। इसमें प्रतिबंधित छात्र संगठन सिमी के स्लीपर सेल का सहयोग लिया गया था। एनआइए ने रांची से सीरियल ब्लास्ट के साथ दो संदिग्धों को पकड़ा था। एक वर्ष बाद 2014 में एनआइए ने आरोपितों के विरुद्ध विशेष न्यायालय को चार्जशीट सौंप दी। इसमें 187 लोगों को गवाह विशेष बनाया गया था। नवंबर, 2021 में न्यायाधीश गुरविंदर सिंह मेहरोत्रा ने दोषियों को सजा सुनाई थी।