शहर में आयोजित एक साहित्यिक सभा के दौरान विशेषज्ञों ने केंद्र सरकार द्वारा बांग्ला भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के निर्णय का स्वागत करते हुए इसे लंबे समय से लंबित बताया। तीन दिवसीय ‘अपीजय बांग्ला साहित्य उत्सव’ (एबीएसयू) के दौरान बंगाली भाषा के शास्त्रीय दर्जा पर आयोजित चर्चा सत्र में ‘इंस्टीट्यूट ऑफ लैंग्वेज स्टडीज एंड रिसर्च’ (आईएलएसआर) की निदेशक स्वाति गुहा ने कहा कि हजार साल पुराने ‘चार्यापद’ श्लोक, जो बौद्ध धर्म की व्याख्या करते हैं, को बंगाली भाषा के उद्गम का प्रतीक माना जाता है।
उन्होंने कहा, “हमने शोध के लिए प्रस्ताव दिया था। हमारा मानना था कि अगर उड़िया और असमिया जैसी भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया जा सकता है, जो चार्यापद को मानक मानती हैं, तो बांग्ला को क्यों छोड़ा जाए? हम, हमारी सरकार और शिक्षा मंत्री ब्रात्य बसु के नेतृत्व में, हर साल अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर यह मुद्दा उठाते थे।”
शोधकर्ता अमिताभ दास ने कहा कि चार्यापद बांग्ला लिपि में लिखा गया था और इसके कुछ लेखक आठवीं सदी के थे। उन्होंने यह भी बताया कि बातचीत में प्रयुक्त बांग्ला भाषा का इतिहास भी एक हजार साल से अधिक पुराना है, जो इसकी प्राचीनता को दर्शाता है। प्रसिद्ध बांग्ला लेखक प्रचेता गुप्ता ने कहा कि वह इस बात पर गर्व महसूस करते हैं कि बांग्ला भाषा का एक कदम शास्त्रीय स्वरूप में है जबकि दूसरा कदम समकालीनता में।