राज्य के बच्चों को साइबर क्राइम से बचाने के लिए मंगलवार को ई-रक्षा अभियान की शुरुआत की गई है। राज्य सरकार, यूनिसेफ, आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय, आईआईटी पटना, मोनाश विश्वविद्यालय ऑस्ट्रेलिया और चंद्रगुप्त प्रबंधन संस्थान की मदद से अभियान चलाया जाएगा। आईआईटी पटना बच्चों को ऑनलाइन शोषण से बचाने के लिए एक पोर्टल बना रहा है। इसके माध्यम से ऑनलाइन उत्तेजक कंटेंट को ब्लॉक कर दिया जाएगा। यूनिसेफ बिहार की प्रमुख मार्गरेट ग्वाडा ने बच्चों की डिजिटल सुरक्षा पर जोर दिया। गृह विभाग के प्रधान सचिव अरविंद कुमार चौधरी ने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के माध्यम से बच्चों के लिए ऑनलाइन उपलब्ध कंटेंट को बंद करने की जरूरत है।
उन्होंने सुझाव दिया कि इस दिशा में राज्यस्तरीय समिति बनाई जानी चाहिए, जो यूनिसेफ के साथ मिलकर इस मुद्दे पर आगे की कार्रवाई का खाका तैयार कर सके। आर्थिक अपराध इकाई के डीआईजी मानवजीत सिंह ढिल्लो ने कहा कि दो विशेष डेस्क स्थापित किए हैं- एनसीआर/ साइबर पोर्टल, जो बाल यौनशोषण सामग्री से संबंधित रिपोर्ट भी संभालता है और साइबर हेल्पलाइन (1930) जहां बड़ी संख्या में मामले दर्ज होते हैं। मामलों की संख्या बहुत अधिक है, जबकि इसे संभालने के लिए मानव संसाधन और अन्य साधन सीमित हैं। बीपीआरएंडडी के डीजी राजीव कुमार शर्मा ने कहा कि इस समस्या के समाधान में माता-पिता की भागीदारी भी आवश्यक है। उन्होंने बताया कि बीपीआरएंडडी महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए मॉड्यूल विकसित कर रहा है।
इंटरनेट इस्तेमाल करने में सबसे तेजी से बढ़ने वाले राज्यों में बिहार राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, 2022 में ऐसे अपराधों में 25.8% की वृद्धि हुई। भारत में लगभग 600 मिलियन इंटरनेट उपयोगकर्ता हैं, जिनमें से 60% युवा (12-29 वर्ष) हैं। इसलिए यह मुद्दा बच्चों और किशोरों की ऑनलाइन सुरक्षा के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। नेशनल सेंटर फॉर मिसिंग एंड एक्सप्लाइटेड चिल्ड्रेन की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, 80% पीड़ित लड़कियां होती हैं, जिनमें से 91% की आयु 14 वर्ष से कम होती है। बिहार इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की सबसे तेजी से बढ़ती संख्या वाले राज्यों में से एक है। इसलिए इस मुद्दे पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। ताकि आने वाले समय में किसी प्रकार की हानि छोटे बच्चों में देखने को न मिले।